गुमशुदा, दैनिक लेखनी प्रतियोगिता -25-May-2024
गुमशुदा (ग़ज़ल)
सच कहूं, तो गुमशुदा ज़िन्दगी की तलाश है मुझे,
या फ़िर कहें ,शायद अब बंदगी की तलाश है मुझे।
गुमशुदा हो गईं है ,जो हरेक पल बढते हुए शोर में,
ढूंढ़ने निकला हूं आज़ शर्मिंदगी की तलाश है मुझे।
गुम रहा ऐ ज़िंदगी मैं तो तेरे ही प्यार में उम्र भर,
इन गुमशुदा रास्तों पर ज़िंदगी की तलाश है मुझे।
ऐसा उलझा तलाश में की,छूटने लगे सभी सहारे,
उठ रहा है धुआं, पर दिल्लगी की तलाश है मुझे।
झूठ बोलते -बोलते ये जिस्म जैसे थक से गये है़ं,
ना जाने, अब कौन सी गंदगी की तलाश है मुझे।
गुनहगारों में अक्सरहां ही मिल जाया करता हूं,मैं,
क्यूंकि अभी तो किसी दरिंदगी की तलाश है मुझे।
आखिर इस तरह कोई भला कैसे मिल सकता है,
जाने अब तक कैसी ही ताज़गी की तलाश है मुझे।
ये जगत "कोरा काग़ज़" समझ भिगों देंगे "राजीव",
सच पूछिए तो,अब बस सादगी की तलाश है मुझे।
~~~~राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 02:16 PM
👏🏻👌🏻
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Reena yadav
26-May-2024 05:48 AM
👍👍
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राजीव भारती
26-May-2024 06:55 AM
जी आपका सहृदय स्वागत।
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Sarita Shrivastava "Shri"
26-May-2024 04:59 AM
वाह! बेहतरीन सुन्दर विचार प्रस्तुति👌👌🌹🌹
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राजीव भारती
26-May-2024 06:55 AM
जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हृदय की अतल गहराइयों से आपका बहुत अभिनंदन।
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